
आदिवासी समाज में बढ़ते कर्ज और उसके कारणों पर प्रकाश डाल गया है कि कैसे सामाजिक कुरीतियाँ, अनावश्यक खर्च और आर्थिक बोझ आदिवासी युवाओं को कर्ज के दलदल में फंसा रहे हैं, जिससे वे गाँव छोड़कर शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं।
आदिवासी समाज भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। पारंपरिक रूप से ये समुदाय प्रकृति के करीब रहते हैं और उनके जीवन में सामूहिकता, सरलता और आत्मनिर्भरता की गहरी जड़ें होती हैं। लेकिन आधुनिक दौर में कई सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं ने इनके जीवन को कठिन बना दिया है।
1. कर्ज का बढ़ता बोझ और इसके कारण
आदिवासी समाज में बढ़ते कर्ज के पीछे कई कारण हैं, जिनमें सामाजिक प्रथाएँ, बेरोजगारी, शिक्षा की कमी, और सरकारी योजनाओं की असफलता शामिल हैं।
(क) शादी-विवाह में अत्यधिक खर्च
तस्वीर में विशेष रूप से इस मुद्दे को उठाया गया है कि कैसे शादी-विवाह में डीजे, शराब (दारू), दहेज, और फिजूलखर्ची जैसी परंपराएँ आदिवासी समाज के लिए बड़ी समस्या बन गई हैं। पहले इन समुदायों में शादियाँ सादगी से होती थीं, लेकिन अब शहरी प्रभाव के कारण दिखावे की प्रवृत्ति बढ़ गई है, जिससे परिवारों पर आर्थिक दबाव बढ़ गया है।
(ख) दहेज प्रथा और महंगे रीति-रिवाज
पहले आदिवासी समाज में दहेज की परंपरा नहीं थी, लेकिन अब यह कुरीति यहाँ भी प्रवेश कर चुकी है। गरीब परिवार अपनी बेटियों की शादी के लिए महंगा दहेज देने को मजबूर होते हैं और इसके लिए कर्ज लेते हैं।
(ग) नशाखोरी और शराब का बढ़ता प्रचलन
शराब (दारू) आदिवासी समाज में एक गंभीर समस्या बन चुकी है। पहले पारंपरिक रूप से कुछ अवसरों पर सीमित मात्रा में शराब का सेवन होता था, लेकिन अब यह एक बुरी लत का रूप ले चुकी है। कई पुरुष शराब पर बड़ी रकम खर्च कर देते हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है और वे कर्ज में डूब जाते हैं।
(घ) आधुनिक जीवनशैली और फिजूलखर्ची
आधुनिकता और सामाजिक दबाव के कारण आदिवासी युवाओं में महंगे कपड़े, मोबाइल, बाइक और अन्य गैर-जरूरी चीजों पर खर्च बढ़ गया है। यह खर्च उनकी आय से अधिक होता है, जिसके कारण उन्हें उधार लेना पड़ता है।
2. कर्ज के प्रभाव और समाज पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव
(क) पलायन और शोषण
आदिवासी युवा कर्ज चुकाने के लिए गाँव छोड़कर शहरों में मजदूरी करने जाते हैं। वहाँ वे निम्न वेतन वाली नौकरियों में काम करते हैं और कई बार ठेकेदारों द्वारा शोषित किए जाते हैं।
(ख) गरीबी और पीढ़ीगत आर्थिक संकट
एक बार कर्ज में फंसने के बाद परिवार इसे चुकाने के लिए अपनी जमीन, मवेशी और अन्य संपत्ति बेचने को मजबूर हो जाते हैं। यह पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी को बढ़ावा देता है।
(ग) पारिवारिक और सामाजिक ताना-बाना टूटना
आर्थिक तंगी के कारण परिवारों में कलह बढ़ती है। कई बार शराब की लत घरेलू हिंसा का कारण बनती है। पारिवारिक संबंधों में तनाव और असंतोष उत्पन्न होता है।
3. इस समस्या का समाधान क्या हो सकता है?
(क) जागरूकता और शिक्षा
सबसे पहले, आदिवासी समुदायों में शिक्षा और जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है ताकि वे समझ सकें कि अनावश्यक खर्च और कर्ज में फंसने से उनका भविष्य बर्बाद हो सकता है।
(ख) सामूहिक विवाह और सरल शादी प्रणाली
अगर शादी-विवाह के दौरान खर्च को सीमित किया जाए और सामूहिक विवाह को बढ़ावा दिया जाए, तो यह समस्या काफी हद तक हल हो सकती है।
(ग) नशामुक्ति अभियान
सरकार और सामाजिक संगठनों को मिलकर आदिवासी क्षेत्रों में नशामुक्ति अभियान चलाने चाहिए ताकि शराब की लत कम हो और परिवार आर्थिक रूप से मजबूत बनें।
(घ) आर्थिक सशक्तिकरण और स्वरोजगार
अगर आदिवासी युवाओं को स्वरोजगार के अवसर दिए जाएँ, तो वे कर्ज लेने से बच सकते हैं। सरकार को इसके लिए योजनाएँ बनानी चाहिए और छोटे उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए।
(ङ) सामाजिक सुधार और परंपराओं में बदलाव
आदिवासी समाज को अपनी पारंपरिक सादगी की ओर लौटना होगा। फिजूलखर्ची को त्यागकर और दिखावे से दूर रहकर ही वे आर्थिक रूप से मजबूत बन सकते हैं।
आदिवासी समाज में बढ़ता कर्ज और उसका प्रभाव एक गंभीर समस्या बन चुका है। सामाजिक कुरीतियों, अनावश्यक खर्च और आर्थिक दबाव के कारण युवा मजबूर होकर गाँव छोड़ रहे हैं। यदि समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले वर्षों में यह संकट और गहरा हो सकता है। इसका समाधान शिक्षा, जागरूकता, नशामुक्ति, आर्थिक सशक्तिकरण और सामाजिक सुधारों के माध्यम से ही संभव है। समाज को स्वयं आगे आकर इन समस्याओं से निपटना होगा, तभी एक बेहतर भविष्य की कल्पना की जा सकती है।