“गाँव का किसान: मिट्टी से उठती कहानी, आकाश छूती पीड़ा”

“गाँव का किसान: मिट्टी से उठती कहानी, आकाश छूती पीड़ा”


The village farmer: A story rising from the soil, pain reaching the sky

“मैं खेतों की हरी चादर हूँ, मैं पसीने का समंदर हूँ,
मैं गाँव का वो साधारण चेहरा हूँ, जो हर रोटी में शामिल होता है!”


1. किसान: एक पहचान जो हर थाली में बसती है

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ की 60% से अधिक आबादी खेती से जुड़ी है। और इसी कृषि की आत्मा है – हमारा “किसान”। लेकिन अफ़सोस, जो अन्नदाता है, वही आज खुद भूखा है।

छत्तीसगढ़ जिसे हम धान का कटोरा कहते हैं, वहाँ का किसान खेतों से धान का सोना उगाता है, लेकिन बाज़ार में वही सोना उसके लिए घाटा बन जाता है।


2. एक दिन किसान की ज़िंदगी का…

सुबह 4 बजे का समय है। बाकी दुनिया अभी सो रही है, लेकिन गाँव का किसान उठ चुका है। अपनी टूटी चप्पल, पुरानी धोती और कंधे पर फावड़ा लिए वो निकल पड़ा है – खेत की ओर।

ना शोर है, ना कोई कैमरा, बस वो और उसकी मिट्टी। उसी मिट्टी में अपनी उम्मीदें बोता है, और कभी–कभी आँसू भी।

**”हर दिन खेत में उतरता है जैसे रण में जा रहा हो,

ना हारता है, ना रुकता है – वो सिर्फ़ बोता है, काटता है और जीता है।”**


3. प्रकृति: कभी माँ, कभी दुश्मन

किसान का सबसे बड़ा साथी भी प्रकृति है, और सबसे बड़ा संकट भी।

  • सूखा पड़ता है – तो फसलें जल जाती हैं।
  • अचानक बाढ़ आती है – तो तैयार फसल बह जाती है।
  • असमय बारिश या ओलावृष्टि – तो मेहनत महीनों की मिट्टी में।

छत्तीसगढ़ के कई इलाकों में पिछले वर्षों में या तो बारिश बहुत कम हुई या फिर अत्यधिक। किसान ने फसल की जगह कर्ज़ काटा।

कविता:

“बादलों से मेरी प्रार्थना है, थोड़ा समझो मेरे खेतों का हाल,
ना कम बरसना, ना ज़्यादा गिरना – बस इतना देना कि भर जाएं बोर और बाल।”


4. सरकारी योजनाएँ: कागज़ों की खेती

सरकारें कहती हैं – किसान हितैषी हैं।
योजनाएं बनती हैं – प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, कृषि बीमा योजना, ऋण माफी, उर्वरक सब्सिडी… पर क्या ये सही मायनों में ज़मीन पर उतरती हैं?

  • छत्तीसगढ़ के कई किसानों को योजना की जानकारी ही नहीं मिलती।
  • बैंक वाले कागज़ों में उलझा देते हैं।
  • बिचौलियों की घुसपैठ से सरकारी खरीद में पारदर्शिता नहीं।

सच्चाई: योजनाएं किताबों में हसीन हैं, खेतों में मुश्किल।


5. निजी कंपनियाँ: लाभ का सौदा, किसान की हानि

निजी कंपनियाँ किसानों को महंगे बीज, रासायनिक उर्वरक, और कर्ज़ देती हैं। शुरुआत में लगता है – सुविधा है, पर धीरे-धीरे किसान पर निर्भरता बढ़ जाती है।

जब फसल का मूल्य तय होता है, तो वही कंपनियाँ उसे कम दाम में खरीदती हैं। किसान को बस इतना मिलता है कि कर्ज़ चुक जाए, बाकी फिर से अगले साल की तैयारी।


6. छत्तीसगढ़ का किसान: उम्मीद की धूप में जलता एक चेहरा

छत्तीसगढ़ के किसान मेहनती हैं – वे धान, कोदो-कुटकी, लाल चावल, मक्का, चना, और कई जैविक फसलें उगाते हैं। लेकिन:

  • मार्केटिंग की कमी से उन्हें सही दाम नहीं मिल पाता।
  • मंडी और खरीद केंद्रों की राजनीति भी उन्हें तोड़ देती है।
  • बिजली, पानी, ट्रांसपोर्ट जैसे आधारभूत साधनों की कमी हर बार उन्हें पीछे खींच देती है।

भावनात्मक पंक्तियाँ:

“मैं किसान हूँ छत्तीसगढ़ का, मेहनत मेरा आभूषण है,
पर जब मंडी जाता हूँ, वहाँ मेरी मेहनत का मोल नहीं,
फसलें तुलती हैं किलो में, मेरा पसीना कोई नहीं तोलता।”


7. पारिवारिक जीवन: संघर्ष की दूसरी कहानी

एक किसान का संघर्ष खेत में ही नहीं, घर में भी होता है:

  • बच्चों की पढ़ाई के लिए पैसे नहीं
  • बेटी की शादी के लिए कर्ज़ लेना पड़ता है
  • बीमारी में सरकारी अस्पताल की लंबी लाइन
  • त्योहारों पर खर्च सोचकर भी डर लगता है

फिर भी किसान मुस्कुराता है, सबको खिलाता है, लेकिन खुद अधपेट सो जाता है।


8. आत्महत्या: एक चुप्पी की चीख

भारत में हर साल हज़ारों किसान आत्महत्या करते हैं – सिर्फ इसलिए क्योंकि:

  • कर्ज़ चुकाने की उम्मीद टूट जाती है
  • फसल खराब हो जाती है
  • सरकार का हाथ नहीं, सिस्टम का बोझ होता है
  • सम्मान नहीं, सिर्फ़ आंकड़े बनकर रह जाते हैं

छत्तीसगढ़ के कई जिलों में भी ऐसे मामले सामने आए – लेकिन कुछ दिन अखबार में छपकर फिर सब भूल जाते हैं।


9. किसान की उम्मीद: एक बीज जो हर बार फिर बोता है

इतनी परेशानियाँ, फिर भी किसान हर साल बीज बोता है। ये उसकी ताकत है, उसका भरोसा है।

प्रेरणादायक कविता:

“मैं हारूँ तो भी बीज बोता हूँ,
मैं टूटूँ तो भी खेत जोतता हूँ,
मैं गिरकर भी चलता हूँ,
क्योंकि मैं किसान हूँ – उम्मीद का दूसरा नाम।”


10. अब ज़िम्मेदारी हमारी भी है…

हमें चाहिए कि हम:

  • किसानों की बात सुनें, समझें
  • लोकल उत्पाद खरीदें – मंडी के बजाय सीधे किसान से
  • खेती को सम्मान दें – इसे पिछड़ापन नहीं, गर्व समझें
  • सोशल मीडिया पर किसान के पक्ष में आवाज़ उठाएं

11. नारे (Slogans) जो दिल से निकले हैं

  • “किसान बचेगा, तो देश बचेगा!”
  • “धरती का वीर सपूत – अन्नदाता किसान”
  • “ना खादी, ना कोट – देश को चलाता है किसान की लंगोट”
  • “जय जवान, जय किसान – सिर्फ़ नारा नहीं, ज़रूरत है”

12. कुछ उद्धरण (Quotes) जो झकझोरते हैं

“जिसके पसीने से धरती सोना देती है, वो ही अक्सर दो वक़्त की रोटी को तरसता है।”

“हम टेक्नोलॉजी में आगे बढ़ गए, पर खेत आज भी उसी बैल से जोते जाते हैं।”

“जिसने देश को खिलाया, हम उसे ही भूखा मरने दे रहे हैं।”


एक अपील – किसान को सिर्फ़ वोट नहीं, इज़्ज़त दो

किसान को ज़रूरत है:

  • सही दाम
  • समय पर बीज, खाद और पानी
  • जानकारी और शिक्षा
  • सम्मान और सुरक्षा

आज अगर हम उसकी तकलीफ नहीं समझेंगे, तो कल हमारी थाली भी खाली रह जाएगी।


अंतिम शब्द:

“मैं किसान हूँ,
मैं मिट्टी से पैदा होता हूँ,
मैं सूरज की तपिश में तपता हूँ,
मैं बारिश की मार झेलता हूँ,
मैं सर्दी में काँपता हूँ,
लेकिन हर मौसम में तुम्हारे लिए अन्न उगाता हूँ –
क्योंकि मैं तुमसे प्यार करता हूँ।”


“जय किसान – जय भारत!”


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