हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 का उद्देश्य
यह अधिनियम हिन्दू परिवारों में विरासत और सम्पत्ति के उत्तराधिकार के नियमों को एकत्रित और व्यवस्थित करने के लिए बनाया गया है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि उत्तराधिकार की प्रक्रिया समानता और न्याय के आधार पर हो।
अधिनियम का नाम और विस्तार (धारा 1)
- इसे “हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956” कहा जाता है।
- यह अधिनियम पूरे भारत में लागू होता है, लेकिन पहले यह जम्मू और कश्मीर पर लागू नहीं होता था। 2019 के संशोधन के बाद यह वहाँ भी लागू होता है।
अधिनियम किन पर लागू होता है? (धारा 2)
यह अधिनियम निम्नलिखित लोगों पर लागू होता है:
- हिन्दू: जिसमें सभी हिन्दू धर्म के अनुयायी आते हैं।
- बौद्ध, जैन, और सिख: इन धर्मों के अनुयायी भी इस अधिनियम के तहत आते हैं।
- वे व्यक्ति जो हिन्दू विधि के अंतर्गत आते हैं: जैसे कि लिंगायत, ब्रह्म समाज, आर्य समाज, आदि।
- ऐसे व्यक्ति जो हिन्दू धर्म में परिवर्तित हो चुके हों।
महत्वपूर्ण परिभाषाएँ (धारा 3)
- गोत्रज: ऐसा व्यक्ति जो एक ही पुरखे से उत्पन्न हुआ हो।
- बंधु: ऐसा व्यक्ति जिसका सम्बन्ध किसी अन्य व्यक्ति से परिवार के माध्यम से हो।
- मरुमक्कत्तायम और अलीयसंतानम कानून: ये केरल, तमिलनाडु आदि में लागू विशेष प्रकार की विरासत की प्रथाएँ हैं।
- उत्तराधिकारी: वह व्यक्ति जो किसी मृतक की सम्पत्ति को प्राप्त करता है।
संशोधन (2005 का संशोधन)
- पुत्री का अधिकार: पहले केवल पुत्र को सम्पत्ति का अधिकार था। संशोधन के बाद पुत्री को भी बराबर का अधिकार दिया गया।
- पुत्री का अधिकार जन्म से ही मान्य है, चाहे उसकी शादी हो चुकी हो या नहीं।
- यह संशोधन 9 सितंबर 2005 से लागू हुआ।
उत्तराधिकार के नियम (धारा 8 से 13)
उत्तराधिकार का नियम इस प्रकार है:
- अगर पिता की मृत्यु होती है और उसने वसीयत नहीं बनाई है, तो संपत्ति इस क्रम में बंटती है:
- पहला: पुत्र, पुत्री, पत्नी, और माता।
- दूसरा: पिता के परिवार के सदस्य।
- तीसरा: माता के परिवार के सदस्य।
- संपत्ति के प्रकार के आधार पर नियम अलग-अलग होते हैं:
- आवश्यक सम्पत्ति: पिता की भूमि, घर आदि।
- स्वयं अर्जित सम्पत्ति: नौकरी, व्यापार आदि से अर्जित सम्पत्ति।
- वसीयत करने का अधिकार: कोई भी व्यक्ति अपनी संपत्ति की वसीयत कर सकता है। अगर वसीयत नहीं की गई है, तो सम्पत्ति उत्तराधिकार के नियमों के अनुसार बंटती है।
स्त्रियों के अधिकार (धारा 14 से 16)
- स्त्री की सम्पत्ति: स्त्री की सम्पत्ति उसकी अपनी होती है और वह उसे अपने बच्चों, पति या अन्य किसी को वसीयत के आधार पर दे सकती है।
- उत्तराधिकार में अधिकार: स्त्रियों को भी सम्पत्ति में समान अधिकार है।
- पिता या माता की सम्पत्ति: पिता या माता की सम्पत्ति का अधिकार भी पुत्रियों को दिया गया है।
संशोधन का प्रभाव (2005 का संशोधन)
- पुत्री का उत्तराधिकार: अब पुत्रियों को भी संयुक्त हिन्दू परिवार की सम्पत्ति में बराबर का हिस्सा मिलता है।
- अगर कोई पुत्री मर जाती है, तो उसका हिस्सा उसके बच्चों को मिलता है।
महत्वपूर्ण बातें
- यह अधिनियम न्याय और समानता के सिद्धांतों पर आधारित है।
- पुत्र और पुत्रियों में सम्पत्ति के बंटवारे में कोई भेदभाव नहीं किया जाता।
- वसीयत करने का अधिकार सभी को दिया गया है।
- 2005 के संशोधन ने स्त्रियों को भी सम्पत्ति में बराबरी का अधिकार दिया।
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हिन्दू परिवारों में सम्पत्ति का बंटवारा न्यायसंगत और समानता के आधार पर हो। संशोधनों ने स्त्रियों को बराबरी का अधिकार देकर इस अधिनियम को और अधिक न्यायसंगत बनाया है।