हम कितने खुश हैं? – एक चिंतन

हम कितने खुश हैं? – एक चिंतन


WORLD HAPPINESS INDEX 2025

भूमिका:
हर वर्ष प्रकाशित होने वाली वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट यह बताती है कि दुनिया के कौन-से देश अपने नागरिकों को खुशहाल जीवन देने में सफल हो रहे हैं। 2025 की रिपोर्ट में भारत का स्थान 147 देशों में 118वां रहा है। यह आंकड़ा केवल एक रैंकिंग नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि आर्थिक विकास के साथ-साथ हमें लोगों के आंतरिक संतोष, सामाजिक सुरक्षा और मूलभूत सुविधाओं पर भी ध्यान देना होगा।


खुशी को मापने के पैमाने:
वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट में खुशी को मापने के लिए निम्नलिखित मापदंडों का उपयोग किया जाता है:

  • प्रति व्यक्ति आय (GDP)
  • सामाजिक समर्थन
  • जीवन प्रत्याशा
  • स्वतंत्रता की अनुभूति
  • उदारता
  • भ्रष्टाचार की धारणा

इन मापदंडों में भारत अपेक्षाकृत कमजोर प्रदर्शन करता रहा है, खासकर स्वतंत्रता की अनुभूति, भ्रष्टाचार और सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में।


भारत की स्थिति और चुनौतियाँ:
भारत में विकास के कई क्षेत्रों में प्रगति हुई है – इंफ्रास्ट्रक्चर, टेक्नोलॉजी, स्टार्टअप्स आदि। लेकिन सामाजिक असमानता, बेरोजगारी, महंगाई, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और शिक्षा की गुणवत्ता जैसे पहलू नागरिकों की संतुष्टि को प्रभावित करते हैं।
सांप्रदायिक तनाव, राजनीतिक ध्रुवीकरण और सामाजिक विभाजन भी लोगों की मानसिक स्थिति पर असर डालते हैं।


पड़ोसी देशों से तुलना और अंतर्विरोध:
रिपोर्ट में पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे देशों का भारत से ऊपर होना एक आश्चर्यजनक तथ्य है। यह सवाल खड़ा करता है – क्या भारत के लोगों की अपेक्षाएं अधिक हैं या क्या हम खुशी के मापदंडों को ठीक से नहीं समझ पा रहे हैं?
इसके साथ ही यह भी स्पष्ट है कि केवल आर्थिक विकास या सैन्य शक्ति से खुशी सुनिश्चित नहीं होती।

पाकिस्तान (109वां), श्रीलंका (133वां), बांग्लादेश (134वां), और चीन (68वां) — ये सब भारत से आगे हैं।

इस पर आश्चर्य जताया गया है क्योंकि पाकिस्तान जैसे देश में गरीबी, हिंसा और आतंकवाद ज़्यादा है।


समाधान और मार्गदर्शन:

  • नीति निर्माण में “वेलबीइंग” को प्राथमिकता दी जाए।
  • मानसिक स्वास्थ्य को सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति में शामिल किया जाए।
  • समावेशी विकास हो – जिसमें हाशिए पर खड़े समुदायों को भी समान अवसर मिलें।
  • शिक्षा प्रणाली को मानवीय मूल्यों और भावनात्मक बुद्धिमत्ता पर केंद्रित किया जाए।
  • स्थानीय संस्कृति, सहजीवन और सामाजिक रिश्तों को बढ़ावा दिया जाए।

भारत में खुश रहने के साधन तो हैं — परिवार, संस्कृति, विविधता — लेकिन फिर भी अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट में हम पीछे हैं। इसका मतलब है कि कहीं न कहीं हमारे नीति-निर्माण और सामाजिक विकास में कमी रह गई है।
खुशी कोई आंकड़ा नहीं, बल्कि जीवन की एक समग्र अनुभूति है – जिसमें आर्थिक सुरक्षा, सामाजिक समर्थन, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की समान भूमिका होती है। भारत को एक मजबूत और समावेशी राष्ट्र बनाना है तो केवल GDP नहीं, GNH (Gross National Happiness) जैसे सूचकांक को भी महत्व देना होगा।


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