प्रसिद्ध रूसी लेखक मैक्सिमस गोर्गी
इस विचार में गहरी दार्शनिकता है। इसका मूल सवाल ये है कि – क्या इंसान का जीवन सिर्फ एक “चक्र” तक सीमित होना चाहिए? यानी –
- पढ़ो
- नौकरी करो या काम करो
- पैसा कमाओ
- घर बनाओ
- शादी करो, बच्चे पैदा करो
- और फिर बुढ़ापे में मर जाओ
तो इंसान को क्या करना चाहिए?
- जिंदगी को उद्देश्यपूर्ण बनाना चाहिए – सिर्फ समाज के तय ढांचे में फँसकर नहीं जीना चाहिए, बल्कि अपने भीतर के सवालों का जवाब ढूँढना चाहिए। क्यों जिएँ? किसके लिए जिएँ?
- रचनात्मक बनो – कला, विज्ञान, सेवा, सामाजिक कार्य, कोई भी ऐसा काम जिसमें आत्मा को संतोष मिले, वो करना चाहिए।
- समाज में बदलाव लाने की कोशिश करें – अगर कुछ गलत है, तो उसे बदलने की कोशिश करें। गोर्की खुद समाजवादी विचारधारा से जुड़े थे और शोषण के खिलाफ थे।
- खुद को जानो (Self-realization) – आध्यात्मिक या आत्मिक खोज भी एक रास्ता है, जहाँ इंसान इस “रूटीन” से ऊपर उठकर खुद से जुड़ता है।
- सिर्फ ज़िंदा मत रहो, ज़िंदगी जियो – दुनिया को देखने, अनुभव करने, सवाल पूछने और सीखने का हक हर इंसान को है। उसी में असली जीवन है।
बहुत बढ़िया! नीचे मैं इस विचार पर आधारित एक प्रेरणादायक और भावनात्मक हिंदी लेख प्रस्तुत कर रहा हूँ जो इस सवाल का गहराई से जवाब देता है – “इंसान क्या सिर्फ कमाने, घर बसाने और मरने के लिए पैदा हुआ है?”
क्या इंसान सिर्फ जीने के लिए पैदा हुआ है या ज़िंदगी को जीने के लिए?
जब हम सुबह उठते हैं, एक दौड़ शुरू हो जाती है – ऑफिस, काम, पैसे कमाना, EMI, बच्चों की पढ़ाई, समाज के नियम, रिश्तों की जिम्मेदारियाँ। और जब रात होती है, तो हम थककर बिस्तर पर गिर जाते हैं – एक और दिन खत्म।
कभी आपने रुककर सोचा है?
क्या यही जीवन है? क्या हम सिर्फ काम करने, पैसा कमाने और मरने के लिए पैदा हुए हैं?
मैक्सिम गोर्की का यह प्रश्न सीधा हमारे दिल के उस कोने को झकझोरता है, जहाँ हमारी अधूरी इच्छाएँ, अनकहे सपने और दबे हुए सवाल छिपे होते हैं।
ज़िंदगी का असली उद्देश्य क्या है?
इंसान इस धरती पर सिर्फ एक उपभोक्ता नहीं है। हम में सोचने, महसूस करने, सृजन करने और बदलाव लाने की शक्ति है। जीवन का उद्देश्य सिर्फ ‘सुविधा’ नहीं, बल्कि ‘सार्थकता’ है।
किसी भूखे को खाना देना, किसी रोते को हँसी देना, किसी अंधेरे को रोशनी में बदलना – यही तो असली जीवन है।
हर इंसान के अंदर एक सपना होता है
बचपन में हर कोई कुछ बड़ा बनना चाहता है – कोई कलाकार, कोई वैज्ञानिक, कोई कवि या कोई समाज सुधारक। पर जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, हम उन सपनों को ज़िम्मेदारियों के नीचे दफना देते हैं।
लेकिन क्या वाकई ज़िम्मेदारियाँ निभाने का मतलब अपने सपनों को मार देना है?
कभी-कभी हम इतने व्यस्त हो जाते हैं ज़िंदगी जीने में कि ज़िंदगी को जीना भूल जाते हैं।
क्या करना चाहिए इंसान को?
- अपने भीतर झाँको – खुद से सवाल करो: क्या मैं जो कर रहा हूँ, वो मैं करना चाहता हूँ?
- हर दिन को जियो – हर दिन को आखिरी दिन की तरह जियो। किसी को माफ करना है, तो करो। कुछ सीखना है, तो सीखो।
- समाज के लिए जियो – जब तक हमारी मेहनत सिर्फ अपने लिए है, तब तक जीवन सीमित है। जब हम दूसरों के लिए जीते हैं, तब जीवन अनंत हो जाता है।
- कला, साहित्य, सेवा, संगीत – कुछ रचनात्मक करो – इससे आत्मा को सुख मिलता है।
- असली आज़ादी तलाशो – आज़ादी सिर्फ बाहरी बंधनों से नहीं होती, बल्कि भीतर के डर, लालच, और झूठ से होती है।
एक छोटी सी कविता:
जीवन का क्या अर्थ है, ये सवाल करता हूँ,
सिर्फ रोटी, कपड़ा, मकान पर क्यों मरता हूँ?
क्या मैं कोई मशीन हूँ, जो बस चलता ही रहे,
या फिर एक आत्मा हूँ, जो खुद से भी डरे?
अब रुकता हूँ, सोचता हूँ, थोड़ा सा जी लेता हूँ,
ज़िंदगी की इस दौड़ से कुछ पल चुरा लेता हूँ।
अंत में…
ज़िंदगी सिर्फ “Survive” करने के लिए नहीं, “Thrive” करने के लिए है।
काम करना ज़रूरी है, पर अपने जीवन को अर्थ देना उससे भी ज़रूरी है।
हर इंसान के भीतर एक शक्ति होती है – दुनिया बदलने की, खुद को जानने की, और एक मिसाल बनने की।
तो अब खुद से पूछो –
क्या तुम जी रहे हो, या सिर्फ साँसें ले रहे हो?