1 अप्रैल को नया वर्ष मानने का इतिहास यूरोपीय सभ्यता और कैलेंडर परिवर्तन से जुड़ा हुआ है। इसके पीछे प्रमुख कारण ग्रेगोरियन कैलेंडर का लागू होना और पुराने जूलियन कैलेंडर का उपयोग करना है।
इतिहास:
1. जूलियन कैलेंडर (Julian Calendar):
- यह कैलेंडर रोमन सम्राट जूलियस सीज़र ने 45 ईसा पूर्व में लागू किया था।
- इसमें एक वर्ष की अवधि 365 दिन और प्रत्येक चार साल में एक लीप वर्ष (366 दिन) रखा गया था।
- यह कैलेंडर यूरोप में बहुत लंबे समय तक उपयोग में रहा।
2. ग्रेगोरियन कैलेंडर (Gregorian Calendar):
- 1582 में, पोप ग्रेगोरी XIII ने कैलेंडर में सुधार किया और नया ग्रेगोरियन कैलेंडर पेश किया।
- इस कैलेंडर के अनुसार, नया वर्ष 1 जनवरी से शुरू होता है।
- इसके बाद धीरे-धीरे यूरोपीय देशों ने इस कैलेंडर को अपनाना शुरू किया।
पुराने नए वर्ष का मनाना (1 अप्रैल):
- जब ग्रेगोरियन कैलेंडर लागू हुआ, तो बहुत से लोग इस बदलाव से अनजान थे या उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया।
- पुराने जूलियन कैलेंडर के अनुसार, नया वर्ष मार्च के अंत में (अक्सर 1 अप्रैल को) मनाया जाता था।
- फ्रांस में विशेष रूप से, 1 जनवरी को नया वर्ष मनाने की प्रथा लागू की गई थी। लेकिन जो लोग 1 अप्रैल को नया साल मनाते रहे, उन्हें मूर्ख समझा जाने लगा।
- इसी कारण से 1 अप्रैल को ‘April Fool’s Day’ (मूर्ख दिवस) के रूप में भी मनाया जाने लगा।
भारत में 1 अप्रैल को नया वर्ष क्यों माना जाता है?
- भारत में सरकारी लेखा-बही (Fiscal Year) का प्रारंभ 1 अप्रैल से होता है।
- यह प्रथा अंग्रेजों के समय से चली आ रही है और आज भी वित्तीय दृष्टि से भारत में यही प्रचलित है।
- विभिन्न भारतीय समुदायों और राज्यों में भी अप्रैल के आस-पास नए वर्ष का प्रारंभ होता है, जैसे बैसाखी (पंजाब), गुड़ी पड़वा (महाराष्ट्र), उगाड़ी (कर्नाटक और आंध्र प्रदेश) आदि।
1 अप्रैल को नया वर्ष मानने की प्रथा का संबंध पुराने कैलेंडर प्रणाली से है। भारत में इसे वित्तीय वर्ष की शुरुआत के रूप में मानने की प्रथा ब्रिटिश शासनकाल से चलती आ रही है। हालांकि, ज्यादातर विश्व अब ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 1 जनवरी को नया वर्ष मानता है।