शादी एक  उलझन – “लव मैरिज या अरेंज मैरिज?”

शादी एक उलझन – “लव मैरिज या अरेंज मैरिज?”


शादी करूँ… मगर कैसे? लव मैरिज या अरेंज मैरिज – एक उलझे युवक की जुबानी

“शादी ज़िंदगी का सबसे बड़ा फैसला होता है…”
यह बात जब भी कोई मुझसे कहता है, मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है। सच कहूँ तो मैं इस समय खुद एक ऐसी ही दुविधा से गुजर रहा हूँ – लव मैरिज करूँ या अरेंज मैरिज?

दिमाग कहता है एक बात… दिल कुछ और।
माँ-बाप की परवरिश, समाज की सोच, दोस्तों के अनुभव, और मेरे अपने डर – सब मिलकर एक जाल बुन देते हैं, जिसमें मैं हर रोज़ उलझता जा रहा हूँ।


लव मैरिज – दिल की आवाज़

मैंने भी प्यार किया है… वो समझती है मुझे, मेरी खामोशियाँ, मेरी बेचैनियाँ।
जब भी उसके साथ होता हूँ, तो लगता है जैसे दुनिया की हर उलझन आसान है।
हमने साथ सपने देखे हैं – एक छोटा सा घर, बहुत सारी बातें, ढेर सारी चाय, और एक-दूसरे की आंखों में सुकून।

पर डर यही है – क्या प्यार शादी के बाद भी वैसा ही रहेगा?
जब जिम्मेदारियाँ आएंगी, EMI, सास-ससुर, बच्चे… क्या हम उतना ही करीब रह पाएंगे?


अरेंज मैरिज – समझदारी की राह

माँ-बाप कहते हैं – “हम तुम्हारे लिए सबसे अच्छा देखेंगे। हमसे बेहतर कौन समझेगा?”
समाज भी यही कहता है – “जहाँ संस्कार मिलें, परिवार की इज़्ज़त हो, वहीं रिश्ता टिकता है।”
और सच कहूँ – कुछ अरेंज मैरिज वाली जोड़ियाँ देखी हैं, जो समय के साथ प्यार में बदल गईं।

पर डर यहाँ भी है – क्या मैं किसी अनजान को अपना दिल दे पाऊँगा?
क्या वो मुझे समझेगी? क्या हमारे सपने मेल खाएँगे?


कौन सी शादी सफल है?

यह सवाल सबसे बड़ा है – कौन सी शादी सफल है?

लव मैरिज में एक-दूसरे को जानने का समय होता है, अपनापन होता है, भावनाएँ होती हैं। लेकिन कभी-कभी ये भावनाएँ ज़िम्मेदारियों के नीचे दब जाती हैं।

अरेंज मैरिज में परिवार का साथ, संस्कार, स्थिरता होती है, लेकिन प्यार को विकसित होने का वक्त देना पड़ता है।

सफल शादी का राज ये नहीं कि कैसे हुई, बल्कि यह है कि दोनों ने उसे कैसे निभाया।
प्यार हो या समझदारी – अगर दोनों में सम्मान, संवाद और समर्पण है, तो हर रिश्ता खूबसूरत बन सकता है।


मेरा मन क्या कहता है?

कभी लगता है, अगर दिल से जुड़ाव है, तो उसी को निभाना चाहिए।
कभी सोचता हूँ, माता-पिता की मर्जी और अनुभव पर भरोसा करूँ।

पर सच यही है कि शादी कोई परीकथा नहीं, यह जीवन की असल परीक्षा है।
यह सिर्फ दो लोगों की बात नहीं, दो परिवारों, दो संस्कृतियों और दो दुनियाओं की बात होती है।


एक छोटी सी कविता मेरी उलझन पर:

दिल कहे साथ उसका है,
दिमाग बोले रिश्ता सच्चा है।
माँ-बाप की मर्जी का सवाल है,
तो प्यार भी क्या कम बेमिसाल है?

क्या रिश्ता वही जो बना दिया जाए,
या वो जो खुद दिल से निभाया जाए?


अंत में…

मैं अब भी सोच रहा हूँ, जवाब आसान नहीं है।
शायद जवाब “कैसे शादी हुई” में नहीं है, बल्कि “कैसे निभाई गई” में है।

चाहे लव हो या अरेंज –
अगर दिल में भरोसा हो, मन में आदर हो, और साथ में हर सुख-दुख बाँटने की हिम्मत हो –
तो वही रिश्ता सफल है।


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