
भारत एक गांव प्रधान देश है, जहाँ आज भी लगभग 65% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। लेकिन विडंबना यह है कि आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी गांवों में मूलभूत सुविधाओं की कमी, बेरोजगारी, पलायन, कुपोषण, अशिक्षा और संसाधनों का अभाव आज भी बड़ी समस्याएं हैं। इन्हीं समस्याओं के समाधान के रूप में ‘आत्मनिर्भर गांव’ की संकल्पना उभरती है।
आत्मनिर्भर गांव की परिभाषा
आत्मनिर्भर गांव वह होता है जो अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं कर सके, जैसे कि खाद्य, जल, ऊर्जा, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि। ऐसा गांव बाहरी सहायता पर कम निर्भर होता है और अपने स्थानीय संसाधनों, ज्ञान, श्रम और प्रतिभा का उपयोग करके अपने विकास का मार्ग खुद तय करता है।
ऐसा गांव सामाजिक रूप से एकजुट, आर्थिक रूप से सशक्त, और पर्यावरणीय दृष्टि से संतुलित होता है। वहां की शिक्षा ऐसी होती है जो युवाओं को गांव में ही रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए, स्वास्थ्य सेवाएं ऐसी होती हैं जो स्थानीय स्तर पर छोटी बीमारियों का इलाज संभव बना सके, और कृषि, पशुपालन, कुटीर उद्योग जैसे क्षेत्र रोज़गार व आय का मजबूत आधार बनें।
आत्मनिर्भर गांव कैसे मुमकिन है?
- स्थानीय संसाधनों का उपयोग: गांवों में जल, ज़मीन, पशु, वन और श्रम जैसे अनेक संसाधन होते हैं। इनका संरक्षण कर एवं विवेकपूर्ण उपयोग कर गांव अपनी जरूरतें खुद पूरी कर सकता है। जैसे वर्षा जल संचयन, बायोगैस प्लांट, सोलर एनर्जी, और जैविक खेती।
- शिक्षा और कौशल विकास: आत्मनिर्भरता के लिए गांव के युवाओं और महिलाओं को स्वरोजगार आधारित कौशल जैसे टेलरिंग, मशरूम उत्पादन, डेयरी, कंप्यूटर शिक्षा, जैविक खेती आदि का प्रशिक्षण देकर उन्हें सक्षम बनाया जा सकता है।
- स्वास्थ्य सुविधाएं: गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, प्रशिक्षित ग्रामीण स्वास्थ्य सेवक, आयुष सेवाएं, स्वच्छता अभियान, पोषण जागरूकता आदि से गांव स्वास्थ्य के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकता है।
- महिला सशक्तिकरण: स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं को सूक्ष्म ऋण, प्रशिक्षण और बाज़ार से जोड़कर अचार, पापड़, अगरबत्ती, दस्तकारी आदि उद्योगों में लगाकर आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम उठाया जा सकता है।
- कृषि और allied activities को बढ़ावा: परंपरागत खेती को वैज्ञानिक तरीके से करना, मृदा परीक्षण, जल संरक्षण, उन्नत बीज, और बाजार की जानकारी देना जरूरी है। साथ ही साथ पशुपालन, बकरी पालन, मत्स्य पालन और बागवानी जैसे सहायक व्यवसाय भी आत्मनिर्भरता में सहायक होते हैं।
- सामाजिक समरसता और नेतृत्व: गांव में जातिगत भेदभाव, आपसी मतभेदों को दूर कर यदि सामूहिक निर्णय प्रणाली लागू की जाए और योग्य नेतृत्व को प्रोत्साहित किया जाए, तो गांव की हर योजना सफल हो सकती है।
- सरकारी योजनाओं का समुचित उपयोग: सरकार की कई योजनाएं जैसे मनरेगा, प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, जल जीवन मिशन, डिजिटल इंडिया, किसान क्रेडिट कार्ड आदि अगर सही तरीके से लागू हों, तो गांव आत्मनिर्भरता की दिशा में तीव्र गति से आगे बढ़ सकता है।
प्रेरणादायक उदाहरण: महाराष्ट्र का हिवरे बाजार गांव
हिवरे बाजार, महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले का एक छोटा सा गांव है, जो कभी अत्यधिक गरीबी, सूखा, पलायन और बदहाली का प्रतीक था। लेकिन वर्ष 1990 के बाद इस गांव में जो बदलाव आया, उसने इसे पूरे देश में आत्मनिर्भरता का आदर्श बना दिया।
परिवर्तन की शुरुआत:
यह बदलाव गांव के युवा सरपंच पोपुराव पवार के नेतृत्व में हुआ। उन्होंने सबसे पहले गांव के लोगों को एकजुट किया और सामूहिक रूप से निर्णय लेने की परंपरा शुरू की। उन्होंने सबसे पहले जल संरक्षण पर ध्यान दिया और सूखा प्रभावित इस गांव में वर्षा जल संचयन के लिए चेक डैम, बोल्डर स्ट्रक्चर, नाले का गहरीकरण आदि कार्य शुरू किए।
जल प्रबंधन से आर्थिक सुधार:
जल संरक्षण से जमीन की नमी बढ़ी, भूजल स्तर ऊपर आया और खेती की स्थिति सुधर गई। किसान अब साल में तीन फसलें उगाने लगे। गांव में फलों की बागवानी, दूध उत्पादन, और जैविक खेती को बढ़ावा मिला।
शिक्षा और रोजगार:
गांव के बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया गया। युवाओं को स्थानीय स्तर पर रोजगार के लिए प्रशिक्षित किया गया। महिलाएं स्वयं सहायता समूहों से जुड़कर स्वरोजगार में लगीं। कोई भी युवक या महिला बेरोजगार नहीं रहा।
स्वास्थ्य और स्वच्छता:
गांव में खुले में शौच की प्रथा खत्म कर दी गई। प्रत्येक घर में शौचालय बनाए गए। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई गईं। नशामुक्ति अभियान चलाया गया।
अन्य उपलब्धियाँ:
- 1995 में जहां 80 परिवार पलायन करते थे, अब कोई गांव छोड़कर नहीं जाता।
- प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक आय ₹832 से बढ़कर ₹30,000 से अधिक हो गई।
- गांव को राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार मिले।
- पंचायत की बैठकें नियमित होती हैं और प्रत्येक निर्णय सामूहिक सहमति से लिया जाता है।
आज हिवरे बाजार क्या दर्शाता है?
हिवरे बाजार आज उस सोच का परिणाम है जहाँ एक गांव अपने नेतृत्व, संसाधनों, एकजुटता और सही दिशा में प्रयास करके न केवल आत्मनिर्भर बना, बल्कि हजारों गांवों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया।
निष्कर्ष:
आत्मनिर्भर गांव केवल एक विचार नहीं, बल्कि एक जीवंत यथार्थ है, जिसे मजबूत इच्छा शक्ति, सही नेतृत्व, जनता की भागीदारी और सतत प्रयास से साकार किया जा सकता है। अगर हर गांव यह संकल्प ले कि उसे अपनी समस्याओं का हल खुद निकालना है, तो भारत को आत्मनिर्भर बनाने का सपना भी सच हो सकता है।
जिस दिन देश के सभी गांव आत्मनिर्भर हो जाएंगे, उस दिन ‘नया भारत’ अपने आप खड़ा हो जाएगा — न केवल आर्थिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी।