यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड (UCC) का मतलब है “एक समान नागरिक कानून”। यह देश के सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक़, गोद लेना, संपत्ति का बँटवारा, और उत्तराधिकार जैसे पर्सनल मामलों में एक ही कानून लागू करने की बात करता है। फिलहाल, भारत में अलग-अलग धर्मों के लोग अपने-अपने धार्मिक कानूनों के अनुसार इन मामलों को सुलझाते हैं।
उदाहरण से समझें:
– विवाह: – हिंदू, मुस्लिम, ईसाई आदि के अपने अलग रीति-रिवाज़ और कानून हैं।
– संपत्ति का बँटवारा: हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, मुस्लिम पर्सनल लॉ आदि अलग नियम हैं।
UCC का लक्ष्य इन सभी धार्मिक कानूनों की जगह **एक समान कानून** बनाना है, ताकि सभी नागरिकों के साथ एक जैसा व्यवहार हो।
UCC क्यों चर्चा में है?
1. संविधान की बात: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में UCC लागू करने का सुझाव दिया गया है, लेकिन यह अभी तक लागू नहीं हुआ।
2. समानता: इसका मकसद है “एक देश, एक कानून” की भावना को बढ़ावा देना।
3. महिला अधिकार: कई धार्मिक कानूनों में महिलाओं के हक़ कमज़ोर हैं। UCC से इनमें समानता आ सकती है।
– फ़ायदे:
– सभी नागरिक एक ही कानून के तहत आएँगे।
– धर्म के नाम पर भेदभाव कम होगा।
– महिलाओं को अधिकार मिलेंगे (जैसे, संपत्ति में बराबर हिस्सा)।
– चुनौतियाँ:
– कुछ समुदायों को लगता है कि यह उनकी धार्मिक आज़ादी पर हमला है।
– भारत की विविधता में इसे लागू करना मुश्किल।
– राजनीतिक विवादों का खतरा।
अभी की स्थिति:
– गोवा में UCC लागू है (पुर्तगाली कानून के आधार पर)।
यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड (UCC) के बारे में और जानें:
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
-ब्रिटिश काल: अंग्रेज़ों ने अपने शासन में कुछ कानून (जैसे भारतीय दंड संहिता) तो एक समान बनाए, लेकिन पर्सनल लॉ (विवाह, उत्तराधिकार) को धर्म के आधार पर छोड़ दिया।
– संविधान निर्माण: 1947 के बाद संविधान सभा ने UCC को “राज्य के नीति निदेशक तत्व” (अनुच्छेद 44) में शामिल किया, लेकिन इसे अनिवार्य नहीं बनाया, क्योंकि तब समाज तैयार नहीं था।
2. UCC और महिला सशक्तिकरण:
– मौजूदा समस्याएँ:
मुस्लिम पर्सनल लॉ: तीन तलाक़ (2019 से बैन), बहुविवाह की अनुमति।
-हिंदू उत्तराधिकार: पहले लड़कियों को संपत्ति में अधिकार नहीं था (2005 में कानून बदला)।
UCC की भूमिका:
– सभी धर्मों की महिलाओं को समान अधिकार मिलेंगे (जैसे, तलाक़ के बाद गुजारा भत्ता, संपत्ति में हिस्सा)।
3. कैसे लागू होगा UCC?
कानून बनाने की प्रक्रिया:
1. सरकार विभिन्न धर्मों के नेताओं, कानून विशेषज्ञों और जनता से चर्चा करेगी।
2. एक ड्राफ्ट तैयार कर संसद में पेश किया जाएगा।
3. संसद की मंजूरी के बाद इसे पूरे देश में लागू किया जा सकता है।
– चुनौतियाँ:
– धार्मिक समूहों का विरोध (जैसे, “हमारी परंपराएँ खतरे में”)।
– विविध भारतीय संस्कृति में **सभी को संतुष्ट** करने वाला कानून बनाना।
4. दुनिया से उदाहरण:
– फ्रांस: “नेपोलियनिक कोड” सभी नागरिकों पर लागू, चाहे धर्म कुछ भी हो।
– तुर्की: 1926 में UCC लागू किया, जिससे महिलाओं को अधिकार मिले।
5. अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ):
– Q. क्या UCC हिंदू कानून थोपेगा?
– नहीं! UCC एक नया, सेक्युलर कानून होगा, जो सभी धर्मों के लिए न्यायसंगत होगा।
– Q. क्या धार्मिक रीति-रिवाज़ बंद होंगे?
– नहीं! UCC सिर्फ़ **सिविल मामलों** (कानूनी अधिकार) को रेगुलेट करेगा, पूजा-पाठ या त्योहारों पर असर नहीं होगा।
– Q. क्या गोवा का UCC मॉडल पूरे भारत में लागू हो सकता है?
– गोवा में UCC पुर्तगाली कानून पर आधारित है, लेकिन भारत के लिए एक नया मॉडल बनाना पड़ेगा, जो यहाँ की विविधता को समझे।
6. हाल की घटनाएँ:
– **उत्तराखंड UCC:** 2024 में उत्तराखंड सरकार ने UCC लागू करने का ड्राफ्ट तैयार किया, जिसमें **लिव-इन रिलेशनशिप** को रजिस्टर करने जैसे प्रावधान हैं।
– सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: कोर्ट ने कई बार कहा है कि “एक समान कानून देश की एकता के लिए ज़रूरी है”।
7. जनता की राय:
– समर्थक:
– “कानून की किताब में सब एक समान हों, तभी देश आगे बढ़ेगा।”
– “महिलाओं को उनका हक़ मिलना चाहिए।”
– विरोधी:
– “हमारी धार्मिक पहचान खत्म हो जाएगी।”
– “सरकार को हमारे मामलों में दखल नहीं देना चाहिए।”
निष्कर्ष:
UCC का विचार “समान नागरिकता” को बढ़ावा देने वाला है, लेकिन इसे लागू करने के लिए सामाजिक सहमति और संवेदनशीलता की ज़रूरत है। यह केवल एक कानूनी बदलाव नहीं, बल्कि भारत के सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करने वाला कदम है।