आधुनिक अर्थव्यवस्था में “टैरिफ” (Tariff) एक बहुत ही महत्वपूर्ण शब्द है, जो व्यापार, सरकार, उपभोक्ता और बाजार सभी से जुड़ा हुआ है। जब हम किसी वस्तु या सेवा के मूल्य निर्धारण, आयात-निर्यात नीति या कर व्यवस्था की बात करते हैं, तो टैरिफ की भूमिका प्रमुख हो जाती है।
इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि टैरिफ क्या होता है, इसके प्रकार, उद्देश्य, प्रभाव, लाभ और हानियाँ क्या होती हैं, और भारत समेत दुनिया में इसका प्रयोग किस प्रकार से होता है।
टैरिफ क्या है? (What is Tariff in Hindi):
टैरिफ का अर्थ है — किसी वस्तु या सेवा पर सरकार द्वारा लगाया गया कर (Tax)।
विशेषकर यह कर तब लगता है जब कोई वस्तु एक देश से दूसरे देश में आयात (Import) या निर्यात (Export) की जाती है। इसका मुख्य उद्देश्य घरेलू उद्योगों की सुरक्षा करना, राजस्व एकत्र करना और व्यापार को नियंत्रित करना होता है।
सरल भाषा में कहा जाए तो —
“जब कोई विदेशी वस्तु हमारे देश में आती है और सरकार उस पर टैक्स लगाती है, तो उसे टैरिफ कहते हैं।”
टैरिफ के प्रमुख उद्देश्य:
- घरेलू उद्योगों की रक्षा:
विदेशी वस्तुएँ सस्ती होने के कारण देश के स्थानीय उद्योग प्रभावित हो सकते हैं। टैरिफ लगाकर उनकी प्रतिस्पर्धा कम की जाती है। - सरकारी राजस्व में वृद्धि:
आयात पर टैक्स लगाकर सरकार को अच्छा-खासा पैसा मिलता है। - विदेशी व्यापार को नियंत्रित करना:
टैरिफ नीति के माध्यम से सरकार यह तय करती है कि किस देश से कितना और क्या व्यापार करना है। - राष्ट्रीय सुरक्षा:
कुछ वस्तुओं पर टैरिफ इसलिए लगाया जाता है ताकि देश अपनी सुरक्षा से जुड़ी वस्तुओं के लिए आत्मनिर्भर बना रहे।
टैरिफ के प्रकार (Types of Tariffs):
- इंपोर्ट टैरिफ (Import Tariff):
जब किसी वस्तु को विदेश से आयात किया जाता है, तो उस पर लगाया जाने वाला कर। - एक्सपोर्ट टैरिफ (Export Tariff):
जब किसी देश से वस्तु को बाहर भेजा जाता है और उस पर टैक्स लगाया जाता है। - स्पेसिफिक टैरिफ (Specific Tariff):
इसमें वस्तु की मात्रा के आधार पर एक निश्चित रकम कर के रूप में ली जाती है, जैसे – प्रति किलो 20 रुपये। - एड वेलोरम टैरिफ (Ad Valorem Tariff):
इसमें वस्तु की कीमत के प्रतिशत के रूप में टैक्स लगाया जाता है, जैसे – कुल मूल्य का 10%। - मिक्स्ड टैरिफ (Mixed Tariff):
इसमें मात्रा और मूल्य दोनों के आधार पर टैक्स लिया जाता है।
टैरिफ लगाने के कारण (Why Countries Use Tariffs):
- व्यापार घाटा कम करने के लिए
- विदेशी निर्भरता घटाने के लिए
- स्थानीय रोज़गार को बढ़ावा देने के लिए
- विदेशी उत्पादों की गुणवत्ता और मूल्यों पर नियंत्रण रखने के लिए
टैरिफ के लाभ (Advantages of Tariff):
- घरेलू उत्पादकों को संरक्षण मिलता है।
- देश को अतिरिक्त आय मिलती है।
- नौकरियों की रक्षा होती है।
- राष्ट्रीय नीतियों को लागू करने में मदद मिलती है।
- विदेशी व्यापार पर सरकार का नियंत्रण बढ़ता है।
टैरिफ की हानियाँ (Disadvantages of Tariff):
- उपभोक्ताओं को महंगी वस्तुएँ खरीदनी पड़ती हैं।
- वैश्विक व्यापार युद्ध की संभावना बढ़ती है।
- कभी-कभी टैरिफ से घरेलू उद्योग आलसी हो जाते हैं।
- देश की प्रतिस्पर्धात्मकता घट सकती है।
- टेक्नोलॉजी और नवाचार का प्रभाव सीमित हो सकता है।
भारत में टैरिफ का उपयोग (Tariff System in India):
भारत सरकार मुख्यतः कस्टम ड्यूटी के रूप में टैरिफ वसूलती है। यह टैक्स सीमा शुल्क विभाग के माध्यम से लागू किया जाता है। भारत ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) की शर्तों के तहत टैरिफ संरचना को पारदर्शी बनाया है।
- आयात वस्तुओं पर बेसिक कस्टम ड्यूटी, एडिशनल ड्यूटी, और IGST लगाया जाता है।
- विशेष परिस्थितियों में एंटी-डंपिंग ड्यूटी और सुरक्षा शुल्क (Safeguard Duty) भी लगाया जाता है।
उदाहरण से समझिए:
मान लीजिए कोई व्यक्ति चीन से LED बल्ब आयात करना चाहता है जिसकी कीमत है 100 रुपये। भारत सरकार उस पर 20% टैरिफ लगाती है, तो अब बल्ब का मूल्य हो जाएगा —
100 + (100 x 20%) = 120 रुपये
इससे घरेलू उत्पादक भी 110-115 रुपये में समान बल्ब बनाकर बेच सकते हैं, और उनके व्यापार को नुकसान नहीं होगा।
टैरिफ बनाम नॉन-टैरिफ बाधाएँ (Tariff vs Non-Tariff Barriers):
टैरिफ किसी भी देश की आर्थिक नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह देश के आर्थिक विकास, रोजगार सृजन, घरेलू उद्योगों की सुरक्षा और विदेशी व्यापार नीति को संतुलित करने का प्रमुख साधन है। हालांकि इसका संतुलन बनाना बेहद आवश्यक है, ताकि उपभोक्ता को अत्यधिक बोझ न उठाना पड़े और देश वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पीछे न रह जाए।