केवल एक पर्यावरणीय या तकनीकी मुद्दा नहीं, बल्कि इंसान के भावनात्मक और संवेदनात्मक पक्ष से जोड़कर देखना भी बेहद ज़रूरी है।

पानी और स्मृति – बचपन की यादें
- बचपन में जब दादी हाथ से कुएँ से पानी खींचती थीं, या जब हम खेतों में नहर के पानी में नहाते थे — पानी सिर्फ संसाधन नहीं, भावनाओं की धार होता था।
- गर्मियों में मटके का ठंडा पानी – आज भी मन को ठंडक दे देता है।
रिश्तों में पानी की अहमियत
- शादी में पहला रिवाज – पानी से हाथ धोना या पानी से स्वागत – यह साफ करता है कि पानी संबंधों का प्रतीक भी है।
- “पानी-पानी हो जाना” – ये कहावत दर्शाती है कि शर्म, भावुकता और करुणा को भी पानी से जोड़ा गया है।
मातृत्व और जल
- माँ और जल दोनों जीवनदाता हैं।
- माँ का दूध और पानी दोनों बच्चे के जीवन की पहली ज़रूरत होते हैं – दया, ममता और पोषण का प्रतीक।
जल-वंचना का दर्द (Empathy)
- कल्पना कीजिए कि एक माँ 4 किलोमीटर दूर से पानी सिर पर लाकर अपने बच्चों को नहला रही है – वो हर बूंद में उसका त्याग और प्रेम छिपा होता है।
- जल संकट में रोटी तो हो सकती है, पर पानी ना हो तो जीवन असहाय लगने लगता है।
आध्यात्मिक पहलू
- हर पूजा, हवन, संस्कार में जल की अनिवार्यता –
गंगाजल से शुद्धि, अर्घ्य से सूर्य नमस्कार, जलांजलि से पितरों की शांति —
यह सब दर्शाता है कि जल सिर्फ शरीर नहीं, आत्मा को भी छूता है।
कवियों और लेखकों की दृष्टि से
- कवि गुलज़ार कहते हैं:
“पानी सा था वो, बह गया मैं भी उसके साथ…” - रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने जल को जीवन की मौलिक कविता कहा।
आधुनिक दौर की विडंबना
- एक ओर बिसलेरी की बोतल को स्टेटस सिंबल बना दिया गया है,
- दूसरी ओर गाँवों में बच्चे गंदे पोखरों से पानी पीने को मजबूर हैं – ये भावनात्मक असमानता हमें झकझोरती है।
शांति और संघर्ष दोनों का कारक
- जल जब बहता है – शांति, प्रेम और प्रगति लाता है।
- जब रुकता है – बीमारी, तनाव और झगड़े लाता है।
- इसीलिए 2025 की थीम “Water for Peace” दिल से जुड़ी हुई है।
एक कविता भावनात्मक रूप में:
“जल ही जीवन”
बूंद-बूंद जब छू जाती है
सूखी रगों की तलहटी,
तब जीवन मुस्काता है,
एक बूंद में सागर समाता है।
नदी की हँसी, खेत की जान,
जल बिना सब सुनसान…
अंतिम विचार – आत्मा की प्यास भी बुझाता है जल
- कभी कंधे पर पानी लेकर चलने वाली बुज़ुर्ग महिला को देखिए – उसके पसीने में जल के लिए प्रेम होता है।
- जल बचाना सिर्फ ज़िम्मेदारी नहीं, करुणा और भावनात्मक परिपक्वता की पहचान है।